कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
पैमाने की हद होती है आख़िर भर ही जाएगा
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
कौन सी चीज़ कहाँ रख दी है कौन मुझे बतलाएगा
प्यार इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
जितने सिक्के डालोगे इतना ख़ाली रह जाएगा
Faiz Ahmad Faiz
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हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
गए दिनों में ये इनआम होने वाला था