हमारा दिल तो ग़म में भी ख़ुशी महसूस करता है
वही मुश्किल में रहते हैं जो ग़म को ग़म समझते हैं
Faiz Ahmad Faiz
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रखना हमेशा याद ये मेरा कहा हुआ
मसअले हल करते करते आदमी का ज़ेहन भी
अब मुझे थोड़ी सी ग़फ़लत से भी डर लगता है
सब की आँखें तो खुली हैं देखता कोई नहीं
ख़ुद तराशना पत्थर और ख़ुदा बना लेना
रखो तुम बंद बे-शक अपनी घड़ियाँ
आज बार-ए-गोश है मेरी सदा उस को मगर
ज़िंदगी का भी किया भरोसा है
हम ने दुनिया से सुलूक ऐसा किया है 'राना'
हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं है
रहे ख़याल हिक़ारत से देखने वालो