ज़िंदगी का भी किया भरोसा है
ज़िंदगी की क़सम भी क्या खाऊँ
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ख़ुशी हम से किनारा कर रही है
हम ने दुनिया से सुलूक ऐसा किया है 'राना'
सब की आँखें तो खुली हैं देखता कोई नहीं
हमारा दिल तो ग़म में भी ख़ुशी महसूस करता है
हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं है
तुम्हारी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
आज बार-ए-गोश है मेरी सदा उस को मगर
मसअले हल करते करते आदमी का ज़ेहन भी
मेरे ख़त का जवाब आया था
ऐ ख़ुदा मैं सुन रहा हूँ आहटें उस वक़्त की
भला कह दिया या बुरा कह दिया
हर इक की है पसंद अपनी हर इक का है मिज़ाज अपना