तुम्हारी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
तुम्हारे आने की हालाँकि कोई आस नहीं
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आज बार-ए-गोश है मेरी सदा उस को मगर
अब मुझे थोड़ी सी ग़फ़लत से भी डर लगता है
हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं है
रखना हमेशा याद ये मेरा कहा हुआ
भला कह दिया या बुरा कह दिया
ख़ुशी हम से किनारा कर रही है
हम ने दुनिया से सुलूक ऐसा किया है 'राना'
मसअले हल करते करते आदमी का ज़ेहन भी
हर इक की है पसंद अपनी हर इक का है मिज़ाज अपना
ज़िंदगी का भी किया भरोसा है
ऐ ख़ुदा मैं सुन रहा हूँ आहटें उस वक़्त की