रखो तुम बंद बे-शक अपनी घड़ियाँ
समय तो रात दिन चलता रहेगा
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हमारा दिल तो ग़म में भी ख़ुशी महसूस करता है
ख़ुद तराशना पत्थर और ख़ुदा बना लेना
हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं है
मसअले हल करते करते आदमी का ज़ेहन भी
तुम्हारी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
रहे ख़याल हिक़ारत से देखने वालो
हर इक की है पसंद अपनी हर इक का है मिज़ाज अपना
अब मुझे थोड़ी सी ग़फ़लत से भी डर लगता है
रखना हमेशा याद ये मेरा कहा हुआ
ख़ुशी हम से किनारा कर रही है
सब की आँखें तो खुली हैं देखता कोई नहीं