ख़ुद तराशना पत्थर और ख़ुदा बना लेना
आदमी को आता है क्या से क्या बना लेना
Rahat Indori
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सब की आँखें तो खुली हैं देखता कोई नहीं
तुम्हारी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
ख़ुशी हम से किनारा कर रही है
अब मुझे थोड़ी सी ग़फ़लत से भी डर लगता है
हमारा दिल तो ग़म में भी ख़ुशी महसूस करता है
हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं है
आज बार-ए-गोश है मेरी सदा उस को मगर
रखना हमेशा याद ये मेरा कहा हुआ
भला कह दिया या बुरा कह दिया
हर इक की है पसंद अपनी हर इक का है मिज़ाज अपना
रहे ख़याल हिक़ारत से देखने वालो