आहटें सुन रहा हूँ यादों की
आज भी अपने इंतिज़ार में गुम
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चराग़-ए-सुब्ह से शाम-ए-वतन की बात करो
शाम से पहले घर गए होते
इस घर की सारी दीवारें शीशे की हैं
तुझ से मिलने को बे-क़रार था दिल
मिट्टी जब तक नम रहती है
उठ रहा है धुआँ मिरे घर में
हुस्न-ए-बज़्म-ए-मिसाल में क्या है
हर इक दरवेश का क़िस्सा अलग है
कोई ता'मीर की सूरत निकालो
है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है
उम्र गुज़री रहगुज़र के आस-पास
हाथ में ख़ंजर आ सकता है