उठा लाया हूँ सारे ख़्वाब अपने
तिरी यादों के बोसीदा मकाँ से
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तेरे आने का इंतिज़ार रहा
शेर-ओ-सुख़न का शहर नहीं ये शहर-ए-इज़्ज़त-ए-दारां है
दिल धड़कता है सर-ए-राह-ए-ख़याल
जब भी तेरी यादों का सिलसिला सा चलता है
अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-रवाँ नहीं जाता
मोहब्बत ख़ब्त है या वसवसा है
हाथ में ख़ंजर आ सकता है
मिट्टी जब तक नम रहती है
घर में जी लगता नहीं और शहर के
इस से पहले नज़र नहीं आया
उम्र गुज़री रहगुज़र के आस-पास
है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है