अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-रवाँ नहीं जाता
दिल से ग़म का धुआँ नहीं जाता
Javed Akhtar
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Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
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रात हम ने जहाँ बसर की है
हर चीज़ से मावरा ख़ुदा है
है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है
कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे
जब भी तेरी यादों का सिलसिला सा चलता है
हुस्न-ए-बज़्म-ए-मिसाल में क्या है
आज मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू है हयात
अल्फ़ाज़ में बंद हैं मआनी
कौन दिल की ज़बाँ समझता है
आहटें सुन रहा हूँ यादों की
तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ
अब जो देखा तो दास्तान से दूर