क़ुर्बत तिरी किस को रास आई
आईने में अक्स काँपता है
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(504) Peoples Rate This
बिखर गया हूँ फ़ज़ाओं में बू-ए-गुल की तरह
ख़राब-ए-इश्क़ सही आलम-ए-शुहूद में हूँ
है ग़नीमत ये फ़रेब-ए-शब-ए-व'अदा ऐ दिल
ज़ख़्म कुछ ऐसे मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर ने पाए
हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे
चुप हो क्यूँ ऐ पयम्बरान-ए-क़लम
हम सकूँ पाएँगे सलमाओं में क्या
सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ
आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ
हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए
मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है