मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
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हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ
अच्छी पी ली ख़राब पी ली
ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
रोते जो आए थे रुला के गए
कल क़यामत है क़यामत के सिवा क्या होगा
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
इतनी पी है कि ब'अद-ए-तौबा भी
पी ली हम ने शराब पी ली
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें
सुब्ह है रात कहाँ अब वो कहाँ रात की बात
रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़