मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
साथ क़श्क़े के है ज़ुन्नार-ए-बरहमन कैसा
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हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सब
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
ले उड़े गेसू परेशानी मिरी
सय्याद तिरा घर मुझे जन्नत सही मगर
जोबन उन का उठान पर कुछ है
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
छुपता नहीं छपाने से आलम उभार का
दर्द हो तो दवा करे कोई
नज्द में क्या क़ैस का है उर्स आज
ज़िद हमारी दुआ से होती है
हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट