सबा अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सबा अकबराबादी (page 2)

सबा अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सबा अकबराबादी (page 2)
नामसबा अकबराबादी
अंग्रेज़ी नामSaba Akbarabadi
जन्म की तारीख1908
मौत की तिथि1991

अच्छा हुआ कि सब दर-ओ-दीवार गिर पड़े

अभी तो एक वतन छोड़ कर ही निकले हैं

आप के लब पे और वफ़ा की क़सम

आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत

आईना कैसा था वो शाम-ए-शकेबाई का

यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं

उस का वादा ता-क़यामत कम से कम

उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें

उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ

तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है

तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं

सोना था जितना अहद-ए-जवानी में सो लिए

पूरी मिरे जुनूँ की ज़रूरत न कर सके

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़

कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो

जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर

जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है

जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं

जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

हुस्न जो रंग ख़िज़ाँ में है वो पहचान गया

हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है

है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ

ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं

चला-चल मोहलत-ए-आराम क्या है

अश्क-बारी नहीं फ़ुर्क़त में शरर-बारी है

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए

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