गुमाँ न था कि लिफ़ाफ़े में ख़त के बदले वो
लहू-लुहान तड़पती ज़बान रख देगा
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पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा
वो एक चेहरा जो उस से गुरेज़ कर जाता
फ़र्जाम
अपने गले पे चलती छुरी का भी ध्यान रख
उन्हें कह दो
उन की याद में बहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगे
अज़ाबों का शहर
काट आगाहियों की फ़स्ल मगर
और कुछ चारा नहीं
जिस्म पर खुरदुरी सी छाल उगा
एक वसिय्यत
वो चीर के आकाश ज़मीं पर उतर आया