शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
दिन गुज़रते हैं तिरे ख़्वाब के आसार में गुम
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खुलता है यूँ हवा का दरीचा समझ लिया
ज़वाल के आईने में ज़िंदा अक्स
निस्फ़ हिज्र के दयार से
डूबते सूरज की सरगोशी
तज़ादों से इबारत
उस दिन से पानियों की तरह बह रहे हैं हम
ज़िक्र मेरा है आसमान में क्या
कुछ लोग इब्तिदा-ए-रिफ़ाक़त से क़ब्ल ही
जब समाअत तिरी आवाज़ तलक जाती है
ख़ुश्क पत्तों में किसी याद का शोला है 'सईद'