साग़र सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का साग़र सिद्दीक़ी (page 3)
नाम | साग़र सिद्दीक़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Saghar Siddiqui |
जन्म की तारीख | 1928 |
मौत की तिथि | 1974 |
जन्म स्थान | Amritsar |
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
ज़ख़्म-ए-दिल पर बहार देखा है
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
वो बुलाएँ तो क्या तमाशा हो
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी
पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
झूम कर गाओ मैं शराबी हैं
जज़्बा-ए-सोज़-ए-तलब को बे-कराँ करते चलो
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
हर शय है पुर-मलाल बड़ी तेज़ धूप है