हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
यारो कोई तो उन की ख़बर पूछते चलो
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मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
दिल अभी
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
बहुत घुटन है
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
लब पे पाबंदी तो है एहसास पर पहरा तो है
प्यार का तोहफ़ा
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ'तों से न गिर
मता-ए-ग़ैर