वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-गुलज़ार कहूँ तो क्या हो
कौन है कितना गुनहगार कहूँ तो क्या हो
तुम ने जो बात सर-ए-बज़्म न सुनना चाही
मैं वही बात सर-ए-दार कहूँ तो क्या हो
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2447) Peoples Rate This
अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके
नहीं किया तो कर के देख
आज
दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
ज़िंदगी-भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
अब वो करम करें कि सितम मैं नशे में हूँ
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
कोई दिल की चाहत से मजबूर है
इसी दो-राहे पर