ऐसे लम्हे भी गुज़ारे हैं तिरी फ़ुर्क़त में
जब तिरी याद भी इस दिल पे गिराँ गुज़री है
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'सैफ़' अंदाज़-ए-बयाँ रंग बदल देता है
कुछ तो रंगीनी-ए-अफ़कार खुले
रात गुज़रे न दर्द-ए-दिल ठहरे
लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
सुब्ह से शाम के आसार नज़र आने लगे
वो भी हमें सरगिराँ मिले हैं
गरचे सौ बार ग़म-ए-हिज्र से जाँ गुज़री है
चाँदनी रात बड़ी देर के बा'द आई है
ये आलाम-ए-हस्ती ये दौर-ए-ज़माना
क्या क़यामत है हिज्र के दिन भी
ग़म-गुसारो बहुत उदास हूँ मैं
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल