अपनी वुसअत में खो चुका हूँ मैं
राह दिखला सको तो आ जाओ
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राह आसान हो गई होगी
मेरा होना भी कोई होना है
एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ
मग़रूर थे अपनी ज़ात पर हम
कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं
हुस्न जल्वा दिखा गया अपना
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
उम्र गुज़री मिरी शीरीनी-ए-गुफ़्तार के साथ
पास आए तो और हो गए दूर
क़रीब-ए-नज़'अ भी क्यूँ चैन ले सके कोई
जिस दिन से भुला दिया है तू ने