हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
हमारे पास भी सामान एक रात का है
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दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
'सैफ़' पी कर भी तिश्नगी न गई
तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
शगुफ़्त-ए-गुंचा-ए-महताब कौन देखेगा
एक उदासी दिल पर छाई रहती है
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को
लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
बोले वो कुछ ऐसी बे-रुख़ी से
दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ