दिल ने पाया क़रार पहलू में
गर्दिश-ए-काएनात ख़त्म हुई
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दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं
उस मुसाफ़िर की नक़ाहत का ठिकाना क्या है
बड़े ख़तरे में है हुस्न-ए-गुलिस्ताँ हम न कहते थे
क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ
जैसे दरिया में गुहर बोलता है
ऐसे लम्हे भी गुज़ारे हैं तिरी फ़ुर्क़त में
अब वो सौदा नहीं दीवानों में
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
जब तसव्वुर में न पाएँगे तुम्हें
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ये आलाम-ए-हस्ती ये दौर-ए-ज़माना