Ghazals of Sakhi Lakhnvi
नाम | सख़ी लख़नवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sakhi Lakhnvi |
ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है
यूँ परेशाँ कभी हम भी तो न थे
ये तो मालूम कि फिर आइएगा
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
तुम अगर दो न पैरहन अपना
'सख़ी' से छूट कर जाएँगे घर आप
रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई
रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब
रुख़ पर है मलाल आज कैसा
क़ासिद तिरे बार बार आए
क़ब्र में अब किसी का ध्यान नहीं
फिर उलझते हैं वो गेसू की तरह
पहलू में बैठ कर वो पाते क्या
निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
न बचपन में कहो हम को कड़ी बात
मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
जी जाए मगर न वो परी जाए
इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
इन को नफ़रत इसे क्या कहते हैं
हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
गुफ़्तुगू हो दबी ज़बान बहुत
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात
दिल उसे दे दिया 'सख़ी' ही तो है
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
दम-ए-यार ता-नज़'अ भर लीजिए