जब ये माना कि दिल में डर है बहुत
तब कहीं जा के दिल से डर निकला
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(627) Peoples Rate This
क्या दिखाता है ये सफ़र देखो
दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ
कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी
झाँकते रात के गरेबाँ से
अपनी आदत कि सब से सब कह दें
निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
कोई शय एक सी नहीं रहती
मुझे ख़बर न थी इस घर में कितने कमरे हैं
ज़िंदगी हम से तो इस दर्जा तग़ाफ़ुल न बरत
हम जो पहले कहीं मिले होते