कोई शय एक सी नहीं रहती
उम्र ढलती है ग़म बदलते हैं
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ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है
जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे
निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
वो भी हमारे नाम से बेगाने हो गए
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल
कुछ तो मैं भी डरा डरा सा था
जब ये माना कि दिल में डर है बहुत
क्या दिखाता है ये सफ़र देखो
वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता