नज़र की धूप में आने से पहले
गुलाबी था वो सँवलाने से पहले
सुना है कोई दीवाना यहाँ पर
रहा करता था वीराने से पहले
मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था
हमारे साथ पेश आने से पहले
खिला करते थे ख़्वाबों में किसी के
तिरे तकिए पे मुरझाने से पहले
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ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ
हवा चलती है दम ठहरा हुआ है
ये जो तालाब है दरिया था कभी
साल गुज़र जाता है सारा
ख़्वाब में मंज़र रह जाता है
कभी होंटों पे ऐसा लम्स अपनी आँख खोले
दो आँखों से कम से कम इक मंज़र में
मिल-जुल कर ईमान ख़ुदा पर ला सकते हैं
ख़्वाब-ज़ादों का दुख ज़मीनी है
जहाँ चौखट है वाँ ज़ीना था पहले