Ghazals of Sarvat Husain

Ghazals of Sarvat Husain
नामसरवत हुसैन
अंग्रेज़ी नामSarvat Husain
जन्म की तारीख1949
मौत की तिथि1996
जन्म स्थानKarachi

ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा

ये होंट तिरे रेशम ऐसे

यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना

वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा

वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है

उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ

थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से

सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

रात ढलने के ब'अद क्या होगा

रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी

क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना

क़सम इस आग और पानी की

पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली

फिर वो बरसात ध्यान में आई

पत्थरों में आइना मौजूद है

पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर

मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते

मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा

लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा

किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए

किस पर पोशीदा और किस पे अयाँ होना था

कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया

जंगल में कभी जो घर बनाऊँ

जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला

जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में

हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ

घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से

गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह

गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा

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