पक्का रस्ता कच्ची सड़क और फिर पगडंडी
जैसे कोई चलते चलते थक जाता है
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1037) Peoples Rate This
शाम से गहरा चाँद से उजला एक ख़याल
आख़िर इक रोज़ उतरनी है लिबादों की तरह
नज़र तो अपने मनाज़िर के रम्ज़ जानती है
दिल में रक्खे हुए आँखों में बसाए हुए शख़्स
बहुत दिनों में मिरे घर की ख़ामोशी टूटी
उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें
ख़्वाहिश है कि ख़ुद को भी कभी दूर से देखूँ
ये जो मैं इतनी सहूलत से तुझे चाहता हूँ
तमाम उम्र यहाँ किस का इंतिज़ार हुआ है
किसी अलाव का शोला भड़क के बोलता है
हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
गुज़र चली है शब-ए-दिल-फ़िगार आख़िरी बार