उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें
सीने में एक हल्क़ा-ए-अहबाब और है
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(536) Peoples Rate This
शाम से गहरा चाँद से उजला एक ख़याल
नज़रों की तरह लोग नज़ारे की तरह हम
ये तो दुनिया भी नहीं है कि किनारा कर ले
हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया
वो चाहता था कि देखे मुझे बिखरते हुए
कुछ और भी दरकार था सब कुछ के अलावा
ये जो मैं इतनी सहूलत से तुझे चाहता हूँ
आँखों में एक ख़्वाब पस-ए-ख़्वाब और है
नुमू-पज़ीर है इक दश्त-ए-बे-नुमू मुझ में
बहुत दिनों में मिरे घर की ख़ामोशी टूटी
तेरी शिकस्त अस्ल में मेरी शिकस्त है
तमाम उम्र यहाँ किस का इंतिज़ार हुआ है