ये तो दुनिया भी नहीं है कि किनारा कर ले
तू कहाँ जाएगा ऐ दिल के सताए हुए शख़्स
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गुज़र चली है शब-ए-दिल-फ़िगार आख़िरी बार
एक किताब सिरहाने रख दी एक चराग़ सितारा किया
आँखों का भरम नहीं रहा है
ये जो मैं इतनी सहूलत से तुझे चाहता हूँ
हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया
बरून-ए-ख़ाक फ़क़त चंद ठेकरे हैं मगर
बिछड़ गया है तो अब उस से कुछ गिला भी नहीं
वो चाहता था कि देखे मुझे बिखरते हुए
अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया
हर एक लम्हा-ए-मौजूद इंतिज़ार में था
उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें