तमाम उम्र यहाँ किस का इंतिज़ार हुआ है
तमाम उम्र मिरा कौन इंतिज़ार करेगा
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हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
तेरी शिकस्त अस्ल में मेरी शिकस्त है
इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी
बरून-ए-ख़ाक फ़क़त चंद ठेकरे हैं मगर
कुछ और अकेले हुए हम घर से निकल कर
ये मेरी काग़ज़ी कश्ती है और ये मैं हूँ
बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी
मिज़ाज-ए-दर्द को सब लफ़्ज़ भी क़ुबूल न थे
सूरज के उफ़ुक़ होते हैं मंज़िल नहीं होती
नज़रों की तरह लोग नज़ारे की तरह हम
उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें