नज़र तो अपने मनाज़िर के रम्ज़ जानती है
कि आँख कह नहीं सकती सुनी-सुनाई हुई
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(586) Peoples Rate This
हर इक उफ़ुक़ पे मुसलसल तुलूअ होता हुआ
यकजाई से पल भर की ख़ुद-आराई भली थी
हर रोज़ इम्तिहाँ से गुज़ारा तो मैं गया
उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें
दिल में रक्खे हुए आँखों में बसाए हुए शख़्स
मिज़ाज-ए-दर्द को सब लफ़्ज़ भी क़ुबूल न थे
कुछ और अकेले हुए हम घर से निकल कर
हर शय से पलट रही हैं नज़रें
आँखों में एक ख़्वाब पस-ए-ख़्वाब और है
ख़्वाहिश है कि ख़ुद को भी कभी दूर से देखूँ
समझ लिया था तुझे दोस्त हम ने धोके में
बहुत दिनों में मिरे घर की ख़ामोशी टूटी