यकजाई से पल भर की ख़ुद-आराई भली थी
शोले से निकल आए शरारे की तरह हम
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(587) Peoples Rate This
ये तो दुनिया भी नहीं है कि किनारा कर ले
बिछड़ गया है तो अब उस से कुछ गिला भी नहीं
ऐसा है कि सिक्कों की तरह मुल्क-ए-सुख़न में
नुमू-पज़ीर है इक दश्त-ए-बे-नुमू मुझ में
नज़रों की तरह लोग नज़ारे की तरह हम
समझ लिया था तुझे दोस्त हम ने धोके में
मता-ए-हर्फ़ भी ख़ुश्बू के मा-सिवा क्या है
तेरी शिकस्त अस्ल में मेरी शिकस्त है
उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें
आँखों में एक ख़्वाब पस-ए-ख़्वाब और है
दीवार पे रक्खा हुआ मिट्टी का दिया मैं