अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
साबित है गुल और शबनम से जो हँसता है वो रोता है
Faiz Ahmad Faiz
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हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं
इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर