हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
यूँ हँस हँस कर फ़रमाते हैं क्यूँ मर्द का नाम डुबोता है
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(457) Peoples Rate This
न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी
मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत