दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
बेहतर नहीं औक़ात का खोना ग़ाफ़िल
वाक़े में हैं बेदार उसी शख़्स के बख़्त
जिस शख़्स को कर सके न सोना ग़ाफ़िल
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लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
पाता नहीं मौत पर कोई शख़्स ज़फ़र
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
तालीम की मीज़ान में हैं तुलते जाते
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम