जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
हो इस से रज़ीलों की बुराई ज़ाहिर
है दख़्ल-ए-अज़ीम इल्म में तीनत को
मेवों में है तासीर ज़मीं की ज़ाहिर
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है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
ये बात अजीब निगाह में आई है