'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
एक आध कोई हुनर भी होगा
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हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
ये बात अजीब निगाह में आई है
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द