तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
मीना है ये और बादा-ए-नाब है रूह
या चंग मानी-ए-अज़ल में 'शहबाज़'
ये तन है रुबाब इस की मिज़राब है रूह
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दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा
पाता नहीं मौत पर कोई शख़्स ज़फ़र
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत