तालीम की मीज़ान में हैं तुलते जाते
हैं जौहर-ए-तब्अ रोज़ खुलते जाते
है अक़्ल की बज़्म आलिमों रौशन
ख़ुद गरचे हैं मिस्ल-ए-शम्अ' घुलते जाते
Jaun Eliya
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बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं