लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
कर शुक्र जो हासिल है तिरे दिल को फ़राग़
मत तेग़-ए-ज़बाँ से कर दिलों को घाएल
भर जाने पे ज़ख़्म के भी रह जाता है दाग़
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
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ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
ये बात अजीब निगाह में आई है
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश