कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
ऐसा न हो कि कल भी हाथ से जाए निकल
जिस कल से बने आज ही फ़ुर्सत कर लो
कल चाहे चले या न चले काम की कल
Jaun Eliya
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है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़