ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
कि कुछ दिनों में न मुँह रहेगा न मुँह में चलती ज़बाँ रहेगी
Anwar Masood
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Allama Iqbal
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कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द