शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा
बुला बुला के थके हम क़ज़ा नहीं आई
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी
ये बात अजीब निगाह में आई है
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं