तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त
अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं
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बरसात
शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
क्या ढूँढने जाऊँ मैं किसी को
लहू से मैं ने लिखा था जो कुछ दीवार-ए-ज़िंदाँ पर
जिस जगह जम्अ तिरे ख़ाक-नशीं होते हैं
वो जब रंग-ए-परेशानी को ख़ल्वत-गीर देखेंगे
जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
नाहक़ शिकायत-ए-ग़म-ए-दुनिया करे कोई
बदन से रूह रुख़्सत हो रही है
ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए
मुझे फ़िक्र-ओ-सर-ए-वफ़ा है हनूज़
मिरी दीवानगी पर होश वाले बहस फ़रमाएँ