Ghazals of Shaanul Haq Haqqi

Ghazals of Shaanul Haq Haqqi
नामशानुल हक़ हक़्क़ी
अंग्रेज़ी नामShaanul Haq Haqqi
जन्म की तारीख1917
मौत की तिथि2005
जन्म स्थानCanada

वो मज़ा रखते हैं कुछ ताज़ा फ़साने अपने

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ

उम्मीद के उफ़ुक़ से न उट्ठा ग़ुबार तक

तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते

समझ में ख़ाक ये जादूगरी नहीं आती

रू भी अक्स-ए-रू भी मैं

पाई न कोई मंज़िल पहुँचीं न कहीं राहें

निकले तिरी दुनिया के सितम और तरह के

नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे

नग़्मा यूँ साज़ में तड़पा मिरी जाँ हो जैसे

मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर

जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है

जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ

इतना ही नहीं है कि तिरे बिन न रहा जाए

ईमा-ए-ग़ज़ल करती हैं मौसम की अदाएँ

इधर मौसम की ये ख़ुश-एहतिमामी

हर-चंद कि साग़र की तरह जोश में रहिए

है अब की फ़स्ल में रंग बहार और ही कुछ

फ़ित्ने जो कई शक्ल-ए-करिश्मात उठे हैं

इक तमन्ना कि सहर से कहीं खो जाती है

इक महक सी दम-ए-तहरीर कहाँ से आई

दुनिया ही की राह पे आख़िर रफ़्ता रफ़्ता आना होगा

चुप है वो मोहर-ब-लब मैं भी रहूँ अच्छा है

बिखर जाएगी शाम आहिस्ता बोलो

असर न हो तो उसी नुत्क़-ए-बे-असर से कह

ऐ दिल तिरे ख़याल की दुनिया कहाँ से लाएँ

ऐ दिल अब और कोई क़िस्सा-ए-दुनिया न सुना

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