Ghazals of Shah Naseer (page 2)

Ghazals of Shah Naseer (page 2)
नामशाह नसीर
अंग्रेज़ी नामShah Naseer
जन्म की तारीख1756
मौत की तिथि1838
जन्म स्थानDelhi

लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम

ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा

ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ

ख़ाल-ए-रुख़ उस ने दिखाया न दोबारा अपना

ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर

कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा

कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

जुदा नहीं है हर इक मौज देख आब के बीच

जो रक़ीबों ने कहा तू वही बद-ज़न समझा

जो गुज़रे है बर आशिक़-ए-कामिल नहीं मालूम

जो ऐन वस्ल में आराम से नहीं वाक़िफ़

जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया

जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल

जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा

इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया

हम फड़क कर तोड़ते सारी क़फ़स की तीलियाँ

हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ

हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस

हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा

हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में

हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का

गो सियह-बख़्त हूँ पर यार लुभा लेता है

ग़र्क़ न कर दिखला कर दिल को कान का बाला ज़ुल्फ़ का हल्क़ा

फ़ुर्सत एक दम की है जूँ हबाब पानी याँ

इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में

दिल में है क्या जानिए किस का ख़याल-ए-नक़्श-ए-पा

दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा

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