दीवार किस तरफ़ से बढ़े कुछ ख़बर नहीं
है बे-शुमार शहरों में जंगल घिरा हुआ
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कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को
मैं सुन रहा हूँ मगर दूसरों को कैसे सुनाऊँ
दुनिया में अंधेरों के सिवा और रहा क्या
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
इस आस पे सैलाब के सीने पे रवाँ हूँ
इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो
तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा
गामज़न
कुछ तेरे सबब थी मिरे पहलू में हरारत
दूर से देख के मैं ने उसे पहचान लिया
एक दरख़्त
चमक चमक के सितारो मुझे फ़रेब न दो