फिर यूँ हुआ थकन का नशा और बढ़ गया
आँखों में डूबता हुआ जादा लगा हमें
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मेरे होंटों पे ख़ामुशी है बहुत
ज़मीन ले के वो आए तो घर बनाया जाए
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
अपनी हस्ती को मिटा दूँ तिरे जैसा हो जाऊँ
तुम्हारे दर्द से ले कर हमारे आँसू तक
कहीं से चाँद कहीं से क़ुतुब-नुमा निकला
क़दम उठे हैं तो धूल आसमान तक जाए
मुझ पे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मिरे साथ न चल
झूटी मोहब्बत
इस बार उस की आँखों में इतने सवाल थे
हादसे शहर का दस्तूर बने जाते हैं
जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से