किस ख़ौफ़ का दाग़ माह-ए-वा-दीद में है
क्या आँख है जो महाज़-ए-ख़ुर्शीद में है
कैसी है नसीम-ए-वहम उड़े हैं चेहरे
किस साँप की आमद-ए-शब तज्दीद में है
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रिंदों को तिरे आरज़ू-ए-ख़ुश्क-लबी है
हर आग को नज़्र-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक करूँ
मन अरफ़ा नफ़्सहू
पत्थर की भूरी ओट में लाला खिला था कल
शीशा-ए-साअत का ग़ुबार
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
दिन-भर की दौड़ रात के औहाम वसवसे
जो उतरा फिर न उभरा कह रहा है
मौज-ए-दरिया को पिएँ क्या ग़म-ए-ख़म्याज़ा करें
महफ़िल का नूर मरजा-ए-अग़्यार कौन है
रफ़्तार ओ सदा गुम्बद-ए-अफ़्लाक में आए
चेहरे का आफ़्ताब दिखाई न दे तो फिर